Thursday, July 21

Boondein



रात के उजालों से खेल रहीं ये बूँदें 
छन से बिखेर रहीं खूबसूरती ये बूँदें 
तारों से लिपटीं ये बूँदें 
दीवारों में समातीं ये बूँदें 
तपती ज़मीं को चूमकर आज़ाद करती ये बूँदें 
रस्तों को अपने सागर में समेटकर बहती ये बूँदें 
पत्तों को नहलाकर तारो ताज़ा करती ये बूँदें ...

ओह! आज इस कायनात में खो  जाएंगे हम 
ये संगीत, ये खुशबु, इन नज़ारों पे निसार हो जाएंगे हम !
इन बूंदों ने किया हमें दीवाना इस कदर 
की कुदरत के ही हवाले होने चल दिए हम !