रात के उजालों से खेल रहीं ये बूँदें
छन से बिखेर रहीं खूबसूरती ये बूँदें
तारों से लिपटीं ये बूँदें
दीवारों में समातीं ये बूँदें
तपती ज़मीं को चूमकर आज़ाद करती ये बूँदें

पत्तों को नहलाकर तारो ताज़ा करती ये बूँदें ...
ओह! आज इस कायनात में खो जाएंगे हम
ये संगीत, ये खुशबु, इन नज़ारों पे निसार हो जाएंगे हम !
इन बूंदों ने किया हमें दीवाना इस कदर
की कुदरत के ही हवाले होने चल दिए हम !